Tuesday, 8 February 2022

Sundar Kand in Hindi: Sampurna Ramayan Sunderkand Path PDF Download - सम्पूर्ण सुंदरकांड पाठ हिन्दी

Sundar Kand (सुन्दर कांड) was first written in Sanskrit by Shri Valmiki ji in Ramayana. In Sunderkand (सुन्दरकाण्ड), Hanuman ji's journey to Lanka to find Sita Mata (सीता माता) has been narrated in a captivating manner. Sunderkand is the fifth of the seven chapters of Ramcharitmanas (रामचरितमानस) written by Goswami Tulsidas (गोस्वामी तुलसीदास). In this sunderkand path, the couplets (दोहे) and chaupai (चौपाइयां) are written in special verses. Sunderkand mentions the strength and victory of his devotee Lord Hanuman (भक्त हनुमान). It is not about the qualities of Lord Rama (भगवान राम) but about the qualities of his devotee and his victory.

According to the famous belief of Hinduism, the desire of the devotee who recites Sunderkand is soon fulfilled all wishes. If you recite Sunderkand on Saturday, then Lord Bajrangbali (बजरंगबली) will be happy and at the same time Shanidev (शनिदेव) will not harm you. Sunderkand composed by Tulsidas is considered to be the most popular and important. According to the beliefs, whoever recites Sunderkand at home at regular intervals, receives the blessings of not only Hanuman ji but also Lord Rama.

Sunderkand symbolizes Hanuman ji's victory saga. In it, lectures have been given about all the events from Hanuman's departure to Lanka, Lanka Dahan, return from Lanka. Hanuman ji receives immense grace from the regular recitation of Sunderkand. This lesson is going to defeat all sufferings. Let us know why the text of Sunderkand is so important and what is the method of worship to do it?

Sundar Kand in Hindi PDF Download (Sunderkand Ka Path - सुंदरकांड पाठ हिन्दी)


Sundar Kand in Hindi PDF Download (Sunderkand Ka Path - सुंदरकांड पाठ हिन्दी)

Benefits of Chanting Sunderkand Path (सुंदरकांड पाठ करने के लाभ)

  • Happiness (सुख-समृद्धि) comes in the house.
  • Knowledge also imporved (बुद्धि का विकास).
  • See many positive (सकारात्मक) changes in life.
  • Increases concentration (एकाग्रता) and confidence (आत्मविश्वास) in the life.
  • Positive energy (सकारात्मक ऊर्जा) is increasing.
  • The result of any work is always positive.
  • Regular recitation of Sunderkand removes negative forces (कारात्मक शक्तियां) from inside a person.
  • By the grace of Lord Hanuman ji, you grow faster and your voice (वाणी) also gets better.
  • It removes domestic troubles (गृह कलेश) and destroys misfortune (दुर्भाग्य).
  • If a person is suffering from any disease then one must listen or read the text of Sunderkand.
  • From this lesson all the houses give their auspicious fruit and happiness dwells in human life.

Sunderkand Path Puja Vidhi (सुंदरकाण्ड पाठ की सरल पूजा विधि)

How to do Sunderkand at home (सुन्दरकाण्ड का पाठ कैसे करें )?

  • Do the puja on the auspicious day of Tuesdays and Saturdays.
  • Clean the proper puja place before starting the path of Sunderkand
  • Wear clean clothes.
  • It would be better to do this lesson in the evening.
  • The idol of Hanumanji placed at the place of worship should be specially worshiped.
  • Along with Hanumanji, you can also install a statue or picture of Lord Rama and Mother Sita in the puja place.
  • Light the ghee lamp (घी का दीपक) in front of Hanuman ji.
  • Offer them with red flowers (लाल फूल) and sweets (मिठाई).
  • Worship Lord Hanuman with vermilion(सिंदूर).
  • First remember Shri Ram, then start Sunderkand by bowing to Hanuman ji.
  • Do Ganpati puja or Vandana as well.
  • Do Aarti of Hanuman ji at the end of the path.
  • Distribute prasad after the end of pooja.
  • Ramcharitmanas composed by Tulsidas should also be worshiped while performing Sunderkand.
  • Wishing the fulfillment of the purpose for which you are reciting Sunderkand, recite Sunderkand.


1 – जगदीश्वर की वंदना

शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं

ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।

रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं

वन्देऽहंकरुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥1॥


भावार्थ: शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ॥1॥


2 – रघुनाथ जी से पूर्ण भक्ति की मांग

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये

सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे

कामादिदोषरहितंकुरु मानसं च॥2॥


भावार्थ: हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए॥2॥


3 – हनुमान जी का वर्णन


अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं

दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं

रघुपतिप्रियभक्तंवातजातं नमामि॥3॥


भावार्थ: अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान् जी को मैं प्रणाम करता हूँ ॥3॥


4 – जामवंत के वचन हनुमान् जी को भाए


चौपाई :

जामवंत के बचन सुहाए,

सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥

तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई,

सहि दुख कंद मूल फल खाई ॥1॥


भावार्थ: जामवंत के सुंदर वचन सुनकर हनुमान् जी के हृदय को बहुत ही भाए। (वे बोले-) हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना ॥1॥


5 – हनुमान जी का प्रस्थान


जब लगि आवौं सीतहि देखी,

होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥

यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा,

चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा ॥2॥


भावार्थ: जब तक मैं सीताजी को देखकर (लौट) न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हनुमान् जी हर्षित होकर चले ॥2॥


6 – हनुमान जी का पर्वत में चढ़ना


सिंधु तीर एक भूधर सुंदर,

कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥

बार-बार रघुबीर सँभारी,

तरकेउ पवनतनय बल भारी ॥3॥


भावार्थ: समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमान् जी खेल से ही (अनायास ही) कूदकर उसके ऊपर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके अत्यंत बलवान् हनुमान् जी उस पर से बड़े वेग से उछले॥3॥


7 – पर्वत का पाताल में धसना


जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता,

चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥

जिमि अमोघ रघुपति कर बाना,

एही भाँति चलेउ हनुमाना॥4॥


भावार्थ: जिस पर्वत पर हनुमान् जी पैर रखकर चले (जिस पर से वे उछले), वह तुरंत ही पाताल में धँस गया। जैसे श्री रघुनाथजी का अमोघ बाण चलता है, उसी तरह हनुमान् जी चले॥4॥


8 – समुन्द्र का हनुमान जी को दूत समझना


जलनिधि रघुपति दूत बिचारी,

तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥5॥


भावार्थ: समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो (अर्थात् अपने ऊपर इन्हें विश्राम दे)॥5॥


Sunderkand Path Mp3 Songs List

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